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Showing posts from July, 2018

Harela Images 2018

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जसुली_लला

आज से कोई पौने दो सौ बरस पहले दारमा के दांतू गाँव में जसुली दताल नामक एक महिला हुईं. दारमा और निकटवर्ती व्यांस-चौदांस की घाटियों में रहने वाले रं (या शौका) समुदाय के लोग शताब्दियों से तिब्बत के साथ व्यापार करते रहे थे जिसके चलते वे पूरे कुमाऊं-गढ़वाल इलाके के सबसे संपन्न लोगों में गिने जाते थे. अथाह धनसम्पदा की इकलौती मालकिन जसुली अल्पायु में विधवा हो गयी थीं और अपने इकलौते पुत्र की भी असमय मृत्यु हो जाने के कारण निःसन्तान रह गयी थीं. इस कारण अकेलापन और हताशा उनकी वृद्धावस्था के दिनों के संगी बन गए थे. ऐसे ही एक दिन हताशा की मनःस्थिति में उन्होंने अपना सारा धन धौलीगंगा नदी में बहा देना तय किया. इत्तफाक की बात रही कि उसी दौरान उस दुर्गम इलाके से लम्बे समय तक कुमाऊँ के कमिश्नर रहे अँगरेज़ अफसर हैनरी रैमजे के काफिले का गुज़र हुआ. हैनरी रैमजे को जसुली दताल के मंसूबों की बाबत मालूम पड़ा तो वह दौड़ा-दौड़ा उन तक पहुंचा. सारी बात जानकर उसने वृद्ध महिला से कहा कि पैसे को नदी में बहा देने के बजाय किसी जनोपयोगी काम में लगाना बेहतर होगा. अफसर का विचार जसुली को जंच गया. किं

जागर - उत्तराखंड (हमारी आस्था)

जागर का मतलब होता है जगाना। उत्तराखण्ड तथा नेपाल के पश्चिमी क्षेत्रोँ में कुछ ग्राम देवताओँ की पूजा कि जाती है, जैसे गंगनाथ, गोलु, भनरीया, काल्सण आदि। बहुत देवताओँ को स्थानीय भाषा में 'ग्राम देवता' कहा जाता है। ग्राम देवता का अर्थ गांव का देवता है। अत: उत्तराखण्ड और डोटी के लोग देवताओँ को जगाने हेतु जागर लगाते हैँ। जागर मन्दिर अथवा घर में कहीं भी किया जाता है। जागर "बाइसी" तथा "चौरास" दो प्रकार के होते हैँ. बाइसी बाईस दिनोँ तक जागर किया जाता है। कहीँ-कहीं दो दिन का जागर को भी बाईसी कहा जाता है। चौरास मुख्यतया चौधह दिन तक चलता है। पर कहिँ कहिँ चौरास को चार दिनोँ में ही समाप्त किया जाता है। जागर में "जगरीया" मुख्य पात्र होता है। जो रामायण, महाभारत आदी धार्मीक ग्रंथोँ की कहानीयोँ के साथ ही जीस देवता को जगाया जाना है उस देवता का चरित्र को स्थानीय भाषा में वर्णन करता है। जगरीया हुड्का (हुडुक), ढोल तथा दमाउ बजाते हुए कहानी लगाता है। जगरीया के साथ में दो तीन जने और रहते हैँ. जो जगरीया के साथ जागर गाते हैँ और कांसे की थाली को नगडे की तरह बजाते ह