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Showing posts from March, 2019

कुमाऊंनी होली

उत्तराखंड में भी कुमाऊंनी होली की खास पहचान है। दो तरीके से होली मनाई जाती है-बैठकी और खड़ी होली। बैठकी होली में रंगों का त्योहार रागों के साथ मनाया जाता है। पूरी रात इस मस्ती में गुजर जाती है और इस बीच पता नहीं चलता कि भोर कब हुई. बैठकी होली की उमंग कुमाऊंनी होली के दो रूप प्रचलित हैं-बैठकी होली और खड़ी होली. बैठकी होली यहाँ पौष माह से शुरू होकर फाल्गुन तक गाई जाती है. पौष से बसंत पंचमी तक अध्यात्मिक बसंत, पंचमी से शिवरात्रि तक अर्ध श्रृंगारिक और उसके बाद श्रृंगार रस में डूबी होलियाँ गाई जाती हैं. इनमें भक्ति, वैराग्य, विरह, कृष्ण-गोपियों की हंसी-ठिठोली, प्रेमी प्रेमिका की अनबन, देवर-भाभी की छेड़छाड़ सभी रस मिलते हैं. इस होली में वात्सल्य, श्रृंगार, भक्ति रस एक साथ मौजूद हैं. संस्कृति प्रेमी एवं युग मंच संस्था चलाने वाले जुहूर आलम कहते हैं कि बैठकी होली जैसे त्योहार को एक गरिमा देती है. होली मर्मज्ञ एवं संस्कृतिकर्मी रहे गिरीश तिवारी 'गिर्दा' कहते हैं, ‘‘बैठकी होली अपने समृद्ध लोकसंगीत की वजह से यहाँ की संस्कृति में रच बस गई है. यह लोकगीत न्योली जै

बाखलीः पहाड़ की परंपरागत हाउसिंग कालोनी

खासकर उत्तराखंड के गांवों में घरों की लंबी श्रृंखला होती थी, जिसे बाखली (बाखई) कहा जाता है। पहाड़ में अनेक गांवों में ऐसी बाखली हैं, जिनमें सैकड़ों परिवार एक साथ रहा करते थे। आज के बदलते दौर में भी कई गांवों में ऐसी बाखली मौजूद हैं, जो सामाजिकता का संदेश देती हैं। इन्हें पहाड़ की परंपरागत हाउसिंग कालोनियां भी कहा जा सकता है। सामान्यतया घरों में बनने वाले व्यंजनों का आदान-प्रदान, एक-दूसरे के घरों में दुःख-तकलीफ तथा कामकाज में सहयोग और खासकर गांवों में रात्रि में बाघ आदि जंगली जानवरों के आने की स्थिति में घरों के भीतर-भीतर ही आने-जाने की यह व्यवस्था खासी कारगर साबित होती रही है।   इससे गांव के लोगों में आपसी संबंध भी काफी मधुर रहते हैं, क्योंकि लोग एक-दूसरे से अधिक गहराई तक जुड़े रहते हैं। इन घरों में जहां दरवाजे व खिड़कियों (द्वार-म्वाव) पर लकड़ी की नक्काशी पहाड़ की समृद्ध काष्ठ कला के दर्शन कराती है, वहीं निचली मंजिल में पशुओं के लिए गोठ, ऊपरी मंजिल में बाहरी कमरा-चाख (जहां चाख यानी अनाज पीसने के लिए हाथ से चलाई जाने वाली चक्की भी होती है), पीछे की ओर रसोई, बाहर की ओर पंछियों के

Char Dham Yatra - 2022

Char Dham Yatra   चार धाम की यात्रा शुरू हो चुकी है. अनेको लोग यात्रा के लिए अपने अपने घरो से प्रस्थान कर चुके है. कई लोगो के लिए चार धाम की यात्रा करना एक सुन्दर सपने के पुरे हो जाने जैसा है. सिर्फ भारत से ही नहीं बल्कि दुनियां के कई देशो से लोग चार धाम की यात्रा के लिए आते है. यहाँ की प्राकर्तिक सुन्दरता, प्राचीनता, और बर्फ से ढकी उत्तराखंड की पहाड़ियों के बीच बने चार धाम श्रधालुओं का मन मोह लेते है. लेकिन क्या आप जानते है चार धाम की यात्रा क्यों की जाती है? चार धाम कौन कौन से है? इन चारो धामों का निर्माण किसने करवाया? शायद कई लोग जो इन यात्रा को कर चुके है वे भी इसके इतिहास के बारे में उतना नहीं जानते. तो चलिए आज इस पोस्ट में हम आपको चार धाम  की यात्रा के बारे में बताते है. चारो धाम के नाम हिन्दू पुराणों के अनुसार बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथ पुरी और रामेश्वरम को चार धामों में गिना जाता है. इन धार्मिक स्थलों की यात्रा को चार धाम यात्रा कहा जाता था. लेकिन आज आप उत्तराखंड की जिस चार धाम यात्रा के बारे में जानते है असल में वह छोटी चार धाम यात्रा है. इस