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Showing posts from April, 2018

हाट कालिका मंदिर , गंगोलीहाट , पिथौरागढ़

उत्तराखंड के गंगोलीहाट की सौन्दर्य से परिपूर्ण छटाओं के मध्य यहां से लगभग 1 किलोमीटर दूरी पर अत्यन्त ही प्राचीन मां भगवती महाकाली का अद्भुत मंदिर हाट कलिका को चाहे धार्मिक दृष्टि से देखें या पौराणिक दृष्टि से हर स्थिति में यह आगन्तुकों का मन मोहने में पूर्णतया सक्षम है। उत्तराखंड के लोगों की आस्था का केन्द्र महाकाली मंदिर अनेक रहस्यमयी कथाओं को अपने आप में समेटे हुये है। पवित्र पहाड़ों की गोद में बसा हरे भरे वृक्षों के मध्य स्थित यह मंदिर भक्तजनों  के लिये जगत माता की ओर से अनुपम भेंट है। सुंदरता से भरपूर इस मंदिर के एक ओर हरा भरा देवदार का आच्छादित घना जंगल है।आदि शक्ति महाकाली का यह मंदिर ऐतिहासिक,पौराणिक मान्यताओं सहित अद्भुत चमत्कारिक किवदंतियों व गाथाओं को अपने आप में समेटे हुये है।सरयू एवं रामगंगा के मध्य गंगावली की सुनहरी घाटी में स्थित भगवती के इस आराध्य स्थल की बनावट त्रिभुजाकार बतायी जाती है। 'माँ कालिका के इस मंदिर' का पूरे कुमाऊँ क्षेत्र सहित भारतीय फौज की एक शाखा कुमाऊ रेजीमेंट की आस्था और विश्वास का केंद्र भी कहा जाता है,कुमाऊ रेजीमेंट का हाट

काफल की एक कथा

काफल की एक कथा जो हमारे यहाँ प्रचलित है, जो मैंनेबचपन में सुनी थी वो इस प्रकार है-- एक गांव में एक विधवा औरत और उसकी 6-7 साल की बेटी रहते थे। किसी प्रकार गरीबी में वो दोनों अपना गुजरबसर करते थे। एक बार माँ सुबह सवेरे घास के लिए गयी और घास के साथ काफल भी तोड़ के लायी।बेटी ने काफल देखे तो बड़ी खुश हुई।माँ ने कहा कि मैं खेत में काम करने जा रही हूँ, दिन में जबलौटूंगी तब काफल खाएंगे। और माँ ने काफल टोकरी में रख दिए। बेटी दिन भर काफल खाने का इंतज़ार करती रही। बार बार टोकरी के ऊपर रखे कपड़े को उठा कर देखती और काफल के खट्टे-मीठे रसीले स्वाद की कल्पना करती !लेकिन उस आज्ञाकारी बच्ची ने एक भी काफल उठा करनहीं चखा कि जब माँ आएगी तब खाएंगे। आखिरकार माँ आई ! बच्ची दौड़ के माँ के पास गयी"माँ माँ अब काफल खाएं?" "थोडा साँस तो लेने दे छोरी" माँ बोली। फिर माँ ने काफल की टोकरी निकाली, उसका कपड़ा उठा कर देखा, अरे ! ये क्या ?काफल कम कैसे हुए ?"तूने खाये क्या""नहीं माँ, मैंने तो चखे भी नहीं !"जेठ की तपती दुपहरी में दिमाग गरम पहले ही हो रखा था,