उत्तराखंड में भी कुमाऊंनी होली की खास पहचान है। दो तरीके से होली मनाई जाती है-बैठकी और खड़ी होली। बैठकी होली में रंगों का त्योहार रागों के साथ मनाया जाता है। पूरी रात इस मस्ती में गुजर जाती है और इस बीच पता नहीं चलता कि भोर कब हुई. बैठकी होली की उमंग कुमाऊंनी होली के दो रूप प्रचलित हैं-बैठकी होली और खड़ी होली. बैठकी होली यहाँ पौष माह से शुरू होकर फाल्गुन तक गाई जाती है. पौष से बसंत पंचमी तक अध्यात्मिक बसंत, पंचमी से शिवरात्रि तक अर्ध श्रृंगारिक और उसके बाद श्रृंगार रस में डूबी होलियाँ गाई जाती हैं. इनमें भक्ति, वैराग्य, विरह, कृष्ण-गोपियों की हंसी-ठिठोली, प्रेमी प्रेमिका की अनबन, देवर-भाभी की छेड़छाड़ सभी रस मिलते हैं. इस होली में वात्सल्य, श्रृंगार, भक्ति रस एक साथ मौजूद हैं. संस्कृति प्रेमी एवं युग मंच संस्था चलाने वाले जुहूर आलम कहते हैं कि बैठकी होली जैसे त्योहार को एक गरिमा देती है. होली मर्मज्ञ एवं संस्कृतिकर्मी रहे गिरीश तिवारी 'गिर्दा' कहते हैं, ‘‘बैठकी होली अपने समृद्ध लोकसंगीत की वजह से यहाँ की संस्कृति में रच बस गई है. यह लोकगीत न्योली जै
"uttarakhandarshann" प्रतिमाओं के लिए भी विख्यात है आप सभी लोगो का स्वागत हैं यहाँ पर आप और हम लोग उत्तराखंड के इतिहास उत्तराखंड के सौंदर्य प्राचीन धार्मिक परम्पराओं धार्मिक: Char Dham Yatra, Do Dham Yatra,Chardham Yatra Package 2022,