बिनसर उत्तरांचल में अल्मोड़ा से लगभग 34 किलोमीटर दूर है। यह समुद्र तल से लगभग 2412 मीटर की उंचाई पर बसा है। लगभग 11वीं से 18वीं शताब्दी तक ये चांद राजाओं की राजधानी रहा था। अब इसे वन्य जीव अभयारण्य बना दिया गया है। बिनसर झांडी ढार नाम की पहाडी पर है।यहां की पहाड़ियां झांदी धार के रूप में जानी जाती हैं। बिनसर गढ़वाली बोली का एक शब्द है -जिसका अर्थ नव प्रभात है।
यहां से अल्मोड़ा शहर का उत्कृष्ट दृश्य, कुमाऊं की पहाडियां और ग्रेटर हिमालय भी दिखाई देते हैं। घने देवदार के जंगलों से निकलते हुए शिखर की ओर रास्ता जाता है, जहां से हिमालय पर्वत श्रृंखला का अकाट्य दृश्य और चारों ओर की घाटी देखी जा सकती है।बिनसर से हिमालय की केदारनाथ, चौखंबा, त्रिशूल, नंदा देवी, नंदाकोट और पंचोली चोटियों की 300 किलोमीटर लंबी शृंखला दिखाई देती है, जो अपने आप में अद्भुत है और ये बिनसर का सबसे बड़ा आकर्षण भी हैं।
मोहन देवदार के बीच में बिनसर महादेव का पवित्र मंदिर स्थित है।अपनी दिव्यता और आध्यात्मिक माहौल के साथ, यह जगह अपनीनिर्दोष प्रकृति की सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि बिन्सार महादेव 9/10 वीं सदी में बनाया गया था और इसलिए ये उत्तराखंड में सदियों से एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल रहा है।
गणेश, हर गौरी औरमहेश्र्मादीनी की मूर्तियों के साथ, यह मंदिर अपनी स्थापत्य कला केलिए जाना जाता है। महेशर्मारिनी की मूर्ति 9 वीं शताब्दी तक कीतारीख में ‘नगरीलिपी’ में ग्रंथों के साथ उत्कीर्ण है। माना जाता है कियह मंदिर अपने पिता बिंदू की याद में राजा पिठ्ठ ने बनाया था और इसे बिंदेश्वर मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। एक छोटे से धारा को देखते हुए और देवदार, पाइन और ओक के एक जंगल से घिरा, यह मंदिर राज्य में आने के लिए काफी जगह बनाता है।
महेशमर्दिनी, हर गौरी और गणेश के रूप में हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियों के साथ निहित, इस मंदिर की वास्तुकला शानदार है।
महेशमर्दिनी की मूर्ति पर नागरीलिपि में शब्द खुदे हुए हैं, जो 9 वीं सदी की ओर वापस ले जाते हैं। यह मंदिर बिंदेश्वार मंदिर के रूप में भी जाना जाता है, जिसका निर्माण राजा पिथू ने अपने पिता की स्मृति में कराया था। पिता का नाम बिंदु था।
नाम = बिनसर महादेव मंदिर, रानीखेत
स्थान = बिन्सर, रानीखेत, कुमाऊं क्षेत्र
दूरी = 17 कि.मी. रानीखेत से
बिनसर महादेव की मान्यताऐ
जनश्रुति के अनुसार पूर्व में निकटवर्ती सौनी गांव में मनिहार दुधारु गाय रोजाना बिनसर क्षेत्र में घास चरने जाती थी । घर आने पर इस गाय का दूध निकला रहता था । एक दिन मनिहार गाय का पीछा करने चल दिया। उसने देखा कि जंगल में एक शिला के ऊपर खड़ी होकर गाय दूध छोड़ रही थी और
शिला दूध पी रही थी। इससे गुस्साए मनिहार ने गाय को धक्का देकर कुल्हाड़ी के उल्टे हिस्से से शिला पर प्रहार कर दिया | इससे शिला से रक्त की धार बहने लगी। उसी रात एक बाबा ने स्वप्न में आकर मनिहारों को गांव छोड़ने को कहा और वह गांव छोड़कर रामनगर चले गए।
जनश्रुति के अनुसार सौनी बिनसर के निकट किरोला गांव में एक 65 वर्षीय नि:संतानी वृद्ध थे। उन्हें सपने में एक साधु ने दर्शन देकर कहा कि कुंज नदी के तट की एक झाड़ी में शिवलिंग पड़ा है। उसे प्रतिष्ठित कर मंदिर का निर्माण करो। उस व्यक्ति ने आदेश पाकर मंदिर बनाया और उसे पुत्र प्राप्त हो गया। पूर्व मं इस स्थान पर छोटा सा मंदिर स्थापित था। वर्ष 1959 में श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा से जुड़े ब्रह्मलीन नागा बाबा मोहन गिरि के नेतृत्व में इस स्थान पर भव्य मंदिर का जीर्णोद्घार शुरू हुआ। इस मंदिर में वर्ष 1970 से अखंड ज्योति जल रही है। मंदिर की व्यवस्थाएं देख रहे 108 श्री महंत राम गिरि महाराज ने बताया कि यहां श्री शंकर शरण गिरि संस्कृत विद्यापीठ की स्थापना की गई है। (बिनसर महादेव मंदिर का इतिहास एवम् मान्यताये)
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