उत्तराखंड राज्य को देवताओं की भूमि ऐसे ही नहीं कहते। ऐसे ही नहीं कहा जाता कि यहां पर देवता आकर स्नान करते हैं। यहां विचरण करते हैं। चलिए, राज्य के ऐतिहासिक मंदिरों के रोचक रहस्यों की कड़ी में इस बार हम आपको बता रहे हैं कि ऐसे मंदिर के बारे में, जहां देवताओं ने आकर मुराद मांगी और उन्हें उसका मुराद का फल भी मिला। बात हो रही है
प्रसिद्ध सिद्धपीठ मां सुरकंडा का मंदिर टिहरी जनपद में जौनुपर के सुरकुट पर्वत पर स्थित हैं। यह स्थान समुद्रतल से करीब 3000 मीटर की ऊचांई पर है। पौराणिक मान्यता के अनुसार यहां सती का सिर गिरा था। जब राजा दक्ष ने कनखल में यज्ञ का आयोजन किया तो उसमें भगवान शिव को नहीं बुलाया। लेकिन, शिव के मना करने पर भी सती यज्ञ में पहुंच गई। वहां दूसरे देवताओं की तरह उसका सम्मान नही किया गया। पति का अपमान और स्वयं की उपेक्षा से क्त्रोधित होकर सती यज्ञ कुंड में कूद गई। इस पर शिव सती का शव त्रिशूल में टांगकर आकाश भ्रमण करने लगे। इसी दौरान सती का सिर सुरकुट पर्वत पर गिरा। तभी से यह स्थान सुरकंडा देवी सिद्धपीठ के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
कब और कैसे जाये
कपाट खुलने का समय- वर्षभर खुले रहते हैं कपाट। मौसम- सर्दियों में अधिकांश समय यहां पर बर्फ गिरी रहती है। मार्च व अप्रैल में भी मौसम ठंडा ही रहता है। मई से अगस्त तक अच्छा मौसम। पहनावा- यहां अधिकांश समय गर्म कपड़ों का ही प्रयोग करते हैं। यात्री सुविधा- मंदिर प्रांगण में यात्रियों के ठहरने के लिए धर्मशालाओं की सुविधा है। वायु मार्ग - जौली ग्रांट हवाई अड्डा। रेल मार्ग -ऋषिकेश में निकटतम रेलवे स्टेशन सड़क मार्ग- सुरकंडा देवी मंदिर पहुंचने के लिए हर जगह से वाहन सुविधा उपलब्ध है। देहरादून वाया मसूरी होते हुए 73 किमी दूर तय कर कद्दूखाल पहुंचना पड़ता है। यहां से दो किमी पैदल दूरी पर मंदिर है। ऋषिकेश से वाया चंबा होते हुए 82 किमी दूरी तयकर भी यहां पहुंचा जा सकता है।
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