टपकेश्वर मंदिर जिसे टपकेश्वर महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है तथा यह मंदिर पूर्णतः भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर भगवान शिव के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यह मंदिर देहरादून शहर के बस स्टैंड (ISBT) से लगभग 5.5 किलोमीटर के दूरी पर स्थित है। यह मंदिर वन की तरफ व एक छोटी सी जल धारा के किनारे पर स्थित है।, तथा यह एक प्राकृतिक गुफा है जिसके अन्दर भगवान शिवलिंग विराजमान है। मंदिर में स्थित शिवलिंग पर चट्टानों से लगातार पानी की बूंदे टपकती रहती हैं जिसके कारण इस मंदिर का नाम टपकेश्वर मंदिर पड़ गया। टपकेश्वर मंदिर के निर्माण के बारे मे कोई जानकारी नहीं है और इस मंदिर को किसने बनाया ना कोई प्रमाण है तथा यह मंदिर आदि अनादी काल से है। ऐसा माना जाता है कि यह तीर्थस्थल गुरू द्रोणाचार्य जी की तपस्थली है।
ऐसा माना जाता है कि श्री टपकेश्वर महादेव मंदिर में जो प्रमुख शिवलिंग है वह स्वयंभू है अर्थात् इस शिवलिंग को किसने बनाया नहीं हैं। श्री टपकेश्वर में मंदिर में एक शिव लिंग जो पूरी तरह रुद्राक्ष से जणा हुआ है तथा यह भक्त गण रुद्राक्ष स्वरुप शिवलिंग के भी दर्शन कर सकते है।
यह मंदिर में सडक से नीचे सीढीओं द्वारा जाया जाता है सीढीओं के सख्या लगलग 300 है। इस मंदिर सभी देवी देवताओं की प्रतिमा है। इस मंदिर में माता वैष्णों का भी मंदिर बनाया गया है इसमें एक प्राकृतिक गुफा है जो मां वैष्णों देवी स्थल का अनुभूति कराती है। इस मंदिर में भगवान हनुमान जी की भी एक विशाल मूर्ति है जो कि इस मंदिर का मुख्य आक्रर्षण है।
पौराणिक कथा के अनुसार यह स्थान देवताओं कालीन है। इस गुफा में देवतागण भगवान शिव जी ध्यान लगाया करते थे। जब जब भगवान शिव की देवताओं पर कृपा हुई भूमार्ग से प्रकट हो के भगवान शिव की देवेश्वर के रूप में दर्शन दिये। देवताओं के बाद ऋषिओं ने भगवान शिव की। श्री टपकेश्वर एक महान तीर्थस्थल है यहंा भगवान शिव ने अनेकांे बार अद्भुत दर्शन देकर श्रद्धालुओं व भक्तों का कल्याण किया मंदिर आदि अनादी काल से है। श्री टपकेश्वर शिवलिंग का वर्णन देवेश्वर व टपकेश्वर के नाम से लगभग 6 हजार वर्षो से स्कंद पुराण केदार खण्ड में उल्लेखित है। इसी गुफा में गुरू द्रोणाचार्य जी जो कि महाभारत में कौरवों व पाडवों के गुरू थे, को तपस्या के बाद धनुर्विद्या का ज्ञान भगवान शिव से प्राप्त हुआ। द्रोण पुत्र अश्वश्थामा ने इसी गुफा में दुध हेतु भगवान शिव की एक पांव के बल खडें होकर 6 मास तपस्या की, पूर्णमासी के दिन तपस्या पूर्ण हुई और लिंग पर दुध की धार बहने लगी और भगवान के चरणों से दुध ग्रहण किया और अपनी भूख प्यास मिटायी और उसी छण भगवान शंकर से अजर अमरता का वरदान प्राप्त हुआ। कलयुग के लगते दुध का गलत इस्तेमाल होना भगवान का नाराज होना दुध पानी के रूप में बदल गया तब से लेकर आज तक जल की बूंदे टपकती है। वर्तमान में भक्त लोग भगवान शिव का जलाभिषेक करके मनोकामना अनुसार फल पाते है।
6.5 किमी की दूरी पर स्थित है
आम तौर पर शिव रत्तरी के दौरान दौरा किया
यात्रा अवधि (देहरादून रेलवे स्टेशन से यात्रा सहित): 1 घंटे
परिवहन विकल्प: बस / टैक्सी
आम तौर पर शिव रत्तरी के दौरान दौरा किया
यात्रा अवधि (देहरादून रेलवे स्टेशन से यात्रा सहित): 1 घंटे
परिवहन विकल्प: बस / टैक्सी
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