प्रकृति के मनोहारी द्रश्योंम से भरपूर उत्तरांचल का एक खुबसूरत जिला अल्मोड़ा, सुन्दर पहाड़, घने जंगल, खुबसूरत वादियां, साफ सुथरी झीलें, कल-कल करती नदियाँ, पुरातन सांस्कृनतिक प्रभाव यही सब अल्मोड़ा को भारत का स्वीयटजरलैण्ड कहे जाने के लिये विवश करता है। यहाँ से हिमालय का शानदार द्रश्य् बड़ा ही मनोहारी दिखायी देता है, अगर हिमालय छूने की तमन्ना हो तो बस पहुँच जाईये कौसानी।
अल्मोड़ा पुराने जमाने में चंद राजवंश की राजधानी थी, ये क्षेत्र कत्यूनरी राजा बयचलदेव की हुकूमत के अंदर आता था, जिसे उन्हो ने एक गुजराती ब्राह्रमण श्री चंद तिवारी को दान में दे दिया था। और फिर १५६० में चंद राज्यह के कल्याउन चंद ने अपनी राजधानी चम्पारवत से अल्मोकड़ा विस्थाथपित कर दी। यह शहर घोड़े की काठी के आकार की लगभग ६ किमी. लम्बीम पहाड़ी पर बसा है। तेजी से बड़ता भवन निर्माण, उसके चलते तेजी से कटते पेड़ धीरे-धीरे कहीं इस शहर की सुंदरता भी कम ना कर दें।
लोकल हस्तशिल्पः ऊनी – माल रोड; तांबे का काम – टमटा मोहल्ला)
सामान्य् ज्ञानः क्षेत्रफल – ११.९ वर्ग किमी. (शहरी) समुद्र से ऊँचाई – १६४६ मीटर (५४०० फीट) तापमान –
४.४ से २९.४ डिग्री सेंटीग्रेट
वस्त्र :– गरमियों में सूती या हल्के ऊनी, जाड़ों में भारी ऊनी
भाषा: – हिन्दीी, कुमाऊंनी और इंग्लि्श (अंग्रेजी)
घूमने के स्थान
नैना देवी मंदिर की दीवारों पर रची गई मूर्तियां देखने लायक हैं। यह मंदिर धार्मिक महत्ता के साथ साथ अपनी आकर्षक रौनक के लिए भी पर्यटकों के बीच लोकप्रिय है। अल्मोड़ा के मुख्य बाज़ार के बीच में यह मंदिर पड़ता है जो कि बताया जाता है कि सैंकड़ों वर्ष पुराना है।
ब्राइट एवं कॉर्नर
ब्राइट एवं कॉर्नर ब्राइट एवं कॉर्नर अपने मनमोहक दर्शयों के लिए पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। यहाँ से सूर्योदय और सूर्यास्त का
दिलकश नज़ारा पर्यटकों को अपनी और खींचता है। इसकी चोटी से आप
बर्फ से ढके हिमालय के अद्भुत दृश्यों को अपनी आँखों में कैद कर सकते हो।
चितई मंदिर
शहर से आठ किमी दूर गोलू देवता का एक मंदिर, गौर भैरव का अवतार, यह प्रसिद्व है सचे मन से मांगी मुराद पूरी करने के लिये बदले में मांग पूरी होने पर मंदिर के प्रांगण में एक घंटी लटकाने का वचन। इस मंदिर में चारों तरफ सिर्फ घंटियां ही दिखायी देती हैं। आप चाहें तो इन देवता को पत्र भी लिख सकते हैं, इनकी मूर्ति के साथ रखे पत्रों का ढेर आप मंदिर में देख सकते हैं।
कटारमल का सूर्य मंदिर
कटारमल का सूर्य मंदिर
ओडिशा के कोणार्क सूर्य मंदिर के बाद कटारमल सूर्य मंदिर सूर्य भगवान को समिर्पत देश का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर है। अल्मोड़ा शहर से 16 किमी दूर स्थित यह मंदिर एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। मंदिर का परिसर 800 साल पुराना है, जबकि मुख्य मंदिर 45 छोटे-छोटे मंदिरों से घिरा हुआ है। हालांकि यह प्राचीन तीर्थ स्थल आज एक खंडर में तब्दील हो चुका है, बावजूद इसके यह अल्मोड़ा का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। यह मंदिर प्राचीन सूर्य भगवान वर्धादित्य या बड़ादित्य को समिर्पत है। मंदिर भवन में श्रद्धालु शिव-पार्वती और लक्ष्मी-नारायण की प्रतिमाएं देख सकते हैं। मंदिर अपने आप में वास्तुकला का एक बेहतरीन नमूना है और यहां की दीवारों पर बेहद जटिल नक्काशी की गई है। रिकॉर्ड से पता चलता है की इस मंदिर का निर्माण कत्यूरी के राजा कटारमल ने 9वीं शताब्दी में करवाया था। समुद्र तल से 2116 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर का सामने वाला हिस्सा पूर्व की ओर है। इसका निर्माण इस प्रकार करवाया गया है कि सूर्य की पहली किरण मंदिर में रखे शिवलिंग पर पड़ती है। मंदिर की दीवार पत्थरों से बनी है और इनके खम्भों पर खूबसूरत नक्काशी की गई है। लकड़ी का दरवाजे इनकी सुंदरता में और भी इजाफा कर देते हैं। 10वीं शताब्दी में यहां से देवी की मूर्ति चोरी हो गई थी। इसे देखते हुए मंदिर के नक्काशीयुक्त दरवाजे और चौखट को दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में रख दिया गया था।
४७ किमी दूर, एक शिव मंदिर, वहाँ प्राकृतिक गुफायें भी हैं
कौसानी
प्राकृतिक रूप से अति सुंदर, बर्फ से ढके पहाड़ यहाँ से बहुत ही पास लगते हैं, महात्मा गाँधी यहाँ १९२९ में आये, गीता-अनाशक्ति योग पर अपनी टीका-टिप्पणी उन्होंने यहीं अनाशक्ति आश्रम में लिखी। हिन्दी और प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रा नंदन पंत की जन्मस्थली।
जागेश्वर
पिथौरागढ़ जाने के रास्ते में शहर से ३८ किमी दूर (मुख्य मार्ग से थोड़ा हटकर), ऐसा माना जाता है कि भारत में स्थित १२ ज्योतिर्लिंगों (स्वयंभू लिंग नागेश) में से एक है, शिवरात्री और श्रावण के महीने में यहाँ मेला लगता है। इस मंदिर के प्रांगण में कुल १२४ छोटे मंदिर और मूर्तियाँ हैं।
बिनरस
बिनरस बिनरस मंदिर का शांत वातावरण पर्यटकों को खींचे लिए आता है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण चंद्रवंशी राजा कल्याण ने करवाया था। अगर आप भी मन की शांति चाहते हैं तो यहाँ अवश्य आएं।बिनरस
बागेश्वर
बागेश्वर में बागनाथ का मंदिर पर्यटकों के बीच खासा लोकप्रिय है। यह सरयू नदी के तट पर बसा है कहा जाता है कि इस मंदिर को 1450 में बनवाया गया था। अगर आप यहाँ की सैर करना चाहते हैं तो आपको बतादें कि यहाँ खाने पीने की उत्तम व्यवस्था है।
बैजनाथ
ट्रैकिंग
अगर आप भी ट्रेकिंग के शौक़ीन हैं तो यहाँ जाना मत भूलियेगा। यहाँ ट्रेकिंग करने का अपना अलग ही मज़ा है। मुक्तेश्वर, लमगड़ा, जालना, शीतलाखेत, मोरनौला आदि जगह आप ट्रेकिंग का मज़ा ले सकते हैं।
अल्मोड़ा शहर में ही छोटे बड़े बहुत मंदिर हैं। इस शहर की ३ चीजें बहुत प्रसिद्व हैं – बाल, माल और पटाल। बाल यानि कि बाल मिठाई, माल रोड और पटाल एक तरह का स्लेशटी पत्थकर जो शहर की सीढ़ियों, रोड और घरों की छत बनाने में उपयोग में आता है (था)। इस शहर में घूमना हो तो हर वक्तश सीढ़ियां चढ़ने ऊतरने के लिये हरदम तैयार रहना, क्योंतकि आप शहर में कहीं भी जायें इन से बच नही सकते।
अल्मोड़ा कैसे जाएँ
रेल मार्ग- निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम है, जो अल्मोड़ा से 91 किलोमीटर दूर है। दिल्ली,हावड़ा, बरेली, रामपुर आदि शहरों से यहाँ के लिए नियमित रूप से ट्रेनें चलती हैं। काठगोदाम से अल्मोड़ा के लिए स्थानीय बसें व टेक्सी सेवाएं उपलब्ध हैं।
सड़क मार्ग - समीपवर्ती प्रदेशों से अल्मोड़ा के लिए राज्य परिवहन निगम की सीधी बस सेवाएं उपलब्ध हैं। हल्द्वानी, काठगोदाम और नैनीताल से नियमित बसें अल्मोड़ा जाने के लिए चलती हैं। ये सभी बसे भुवाली होकर जाती हैं। भुवाली से अल्मोड़ा जाने के लिए रामगढ़, मुक्तेश्वर वाला मार्ग भी है। परन्तु अधिकांश लोग गर्म पानी के मार्ग से जाना ही उत्तम समझते हैं। क्योंकि यह मार्ग काफी सुन्दर तथा नजदीकी मार्ग है।
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