
उत्तराखंड के पौराणिक तीर्थ।
पाताल भुवनेश्वर तीर्थराज है जिसे सभी पौराणिक देवताओं का संग्रहालय कहना ही उचित होगा। इस तीर्थ के विकास की वजह से ही पिथौरागढ जिले की रोजगार की समस्या खत्म हो जाती। सरकारें आती हैं और दाना पानी चुगकर पहाड़ की गरीबी पर आंसू बहाकर चली जाती है। पहाड़ के विकास की कोई कारगर योजना किसी सरकार ने आजतक यहां नहीं बनाई है। जम्मू स्थित माता वैष्णौदेवी के कारण पूरा जम्मू रीजन समृद्ध हो गया है।
कुमाऊं में हजारों तीर्थ हैं पौराणिक काल की मानसरोवर झील कुछ समयपूर्व तक कुमाऊं में ही थी जो अब चीन के कब्जे में है। मानसरोवर सिध्दीदाता तीर्थ है,जिसकी यात्रा युगों से भारतीय मनीषी करते रहे हैं।
पिथौरागढ जिले का पातालभुवनेश्वर कुछ प्रकाशित हुआ है इस गुफा के अतिरिक्त दर्जनों गुफाऐं और भी हैं जो अपनी तंगहाली सरकार की बेरूखी के कारण अभी तक प्रकाश में नहीं हैं। इनमें कुछ इस प्रकार हैं, कोटेश्वर,शैलेश्वर, भुलेश्वर, मूसलेश्वर आदि।
इस अति प्राचीन मार्कंडेय और सनकादि ऋषियों की तपस्थली में प्राचीन मूर्तियां दर्शनीय हैं। भीम गदा, ऐरावत हाथी के हजार पांव, राजा जनमेजय का सर्पकुंड, नौ लाख तारों का समूह, कामधेनु के थन से टपकता दूध का ब्रह्मकुंड, हंस का तिरछा मुंह, कालभैरव की जिह्वा, जटायु के पंख, ब्रह्मांड के नियंता भुवनेश्वर की शक्तिस्थल में विराजमान त्रिदेव आदि देखने लायक हैं।
स्कंधपुराण के मानसखंड में इस पवित्र तीर्थ को संसार का सबसे पवित्र व सिद्धिदाता तीर्थ बताया गया है। हम सब कुमाऊं के लोगों का कर्तव्य है कि अपने तीर्थों की जानकारी प्राप्त कर तीर्थयात्रा करें और अपने रिस्तेदारों मित्रों को यहां दर्शनों को भेजें।
पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा
'पाताल भुवनेश्वर का गुफ़ा मंदिर' उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के प्रसिद्ध नगर अल्मोड़ा से शेराघाट होते हुए 160 किलोमीटर की दूरी तय कर पहाड़ी वादियों के बीच बसे सीमान्त कस्बे गंगोलीहाट में स्थित है। पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा किसी आश्चर्य से कम नहीं है। इसके रास्ते में दिखाई देती हैं धवल हिमालय पर्वत की नयनाभिराम नंदा देवी, पंचचूली, पिंडारी, ऊंटाधूरा आदि चोटियां। दिल्ली से चल कर पहले दिन 350 किमी की दूरी तय कर अल्मोड़ा पहुंच सकते हैं।
धार्मिक मान्यता
भारत के प्राचीनतम ग्रन्थ स्कन्द पुराण में वर्णित पाताल भुवनेश्वर की गुफ़ा के सामने पत्थरों से बना एक-एक शिल्प तमाम रहस्यों को खुद में समेटे हुए है। किंवदन्ती है कि यहाँ पर पाण्डवों ने तपस्या की और कलियुग में आदि शंकराचार्य ने इसे पुनः खोजा। इस गुफ़ा में प्रवेश का एक संकरा रास्ता है जो कि क़रीब 100 फीट नीचे जाता है। नीचे एक दूसरे से जुड़ी कई गुफ़ायें है जिन पर पानी रिसने के कारण विभिन्न आकृतियाँ बन गयी है जिनकी तुलना वहाँ के पुजारी अनेकों देवी देवताओं से करते हैं। ये गुफ़ायें पानी ने लाइम स्टोन (चूना पत्थर) को काटकर बनाईं हैं। गुफ़ाओं के अन्दर प्रकाश की उचित व्यवस्था है। कुमाऊं आँचल की पिथौरागढ़ क्षेत्र अपना एक अलग महत्व रखता है। ज़िला पिथौरागढ़ की तहसील को गुफ़ाओं वाला देव कहा गया है। पिथौरागढ़ जनपद के गंगोलीहाट क्षेत्र में महाकाली मंदिर, चामुंडा मंदिर, गुफ़ा मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।
कैसे पहुँचे
पाताल भुवनेश्वर जाने के कई रास्ते हैं। यहां जाने के लिए ट्रेन से काठगोदाम या टनकपुर जाना होगा। उसके आगे सड़क के रास्ते ही सफर करना होगा। आप अल्मोड़ा से पहले गंगोलीहाट शेराघाट, या बागेश्वर, या दन्या होते जा सकते हैं। टनकपुर, पिथौरागढ़ से भी गंगोलीहाट जा सकते हैं। दिल्ली से बस द्वारा 350 कि.मी. यात्रा कर आप अल्मोड़ा पहुंच कर विश्राम कर सकते है और वहां से अगले दिन आगे की यात्रा जारी रख सकते हैं। रेलवे द्वारा यात्रा करनी हो तो काठगोदाम अन्तिम रेलवे स्टेशन है वहां से आपको बस या प्राइवेट वाहन बागेश्वर, अल्मोड़ा के लिए मिलते रहते हैं।
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