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Showing posts from June, 2018

उत्‍तराखंड स्वच्छता अभियान

ग्राम बजौं के युवाओं द्वारा मानिला मंदिर के समीप पर्यटन स्थल पर सफाई अभियान चलाया गया, जिसमें पर्यटकों द्वारा फैलाये गये कूड़ा-करकट को जमा कर नष्ट किया गया।कृपया सभी पर्यटकों से निवेदन है कि मानिला जैसे पर्यटन में गंदगी न फैलायें और इसे स्वच्छ बनाये रखें। धन्यवाद!

कुछ यादगार फोटो हमारे गांव उत्तराखंड की

भाग दौड़ की जिंदगी में ग़ुम होते रिश्ते जी हां कुछ यही हकीकत है अब अपने पहाड़ी इलाको की जो मजबूत सम्बन्ध प्रगाढ़ रिश्तों के लिए जाने जाते थे ।पर जिंदगी की कश्मकश में शायद सब छिन्न भिन्न होते जा रहे है।  बीरान होती बाखली अभी भी किसी के लौटने का इंतजार कर रही है। आओ दाज्यू कभी पहाड़ की ओर.................. कुछ यादगार फोटो  आप के पास भी उत्तराखंड की कुछ यादगार फोटो है तो हमे भेजिए कुछ यादगार फोटो  आप के पास भी उत्तराखंड की कुछ यादगार फोटो है तो हमे भेजिए आप के पास भी उत्तराखंड की कुछ यादगार फोटो है तो हमे भेजिए........

खीरे का रायता

खीरे के रायते को गर्मियों मे ज़्यादा पसंद किया जाता है। रायते के बिना आपका खाना अधूरा है और फिर रायते में भी खीरे का रायता हो तो बात ही कुछ और है. यह आपके मुंह को स्वाद के साथ-साथ पेट को ठंडक भी देगा. (1)  रेसिपी क्विज़ीन : इंडियन (2)  कितने लोगों के लिए : 2 - 4 (3)  समय : 5 से 15 मिनट (4)  मील टाइप : वेज आवश्यक सामग्री (1)  2 खीरे (2)  2 कप दही लगभग 400 ग्राम (3)  बारीक कटी एक हरी मिर्च (4)  2 चुटकी काली मिर्च पाउडर (5)  1/4 छोटी चम्मच काला नमक (6)  3/4 छोटी चम्मच भुना-पिसा हुआ जीरा-सौंफ (7)  स्वादानुसार नमक (8)  बारीक कटा हरा धनियां सजावट के लिए खीरे के रायते को भुना-पिसा हुआ जीरा-सौंफ और हरे धनिये की पत्तियों से सजाकर और भी आकर्षक बना सकते हैं. विधि (1)  खीरा दोनों तरफ से काट के घिसकर खीरे की कड़वाहट निकाल लें फिर उसे छीलकर धोलें. (2)  उसके बाद खीरे को कद्दूकस से घिस लें. (3)   साथ ही दही फेंट लें. (4) दही में घिसा हुआ खीरा, हरी मिर्च, काली मिर्च, सादा नमक, काला नमक, हरा धनिया और भुना-पिसा हुआ       जीरा-सौंफ डा

स्वर्ग का आनंद तो एक बार चले आइये देवभूमि उत्तराखंड के "चोपता" की वादियों में

अगर लेना है स्वर्ग का आनंद तो एक बार चले आइये देवभूमि उत्तराखंड के "चोपता" की वादियों में रुद्रप्रयाग । चोपता शहर का कोलाहल धीमे-धीमे हिल स्टेशन्स तक भी पहुंचता जा रहा है। खासकर गर्मियों में हिल स्टेशन पहुंचने वाले टूरिस्ट की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है। ऐसे में अगर आप ऐसे टूरिस्ट प्लेस की तलाश कर रहे हैं जो शांति और सुकून देने वाला हो तो उत्तराखंड के चोपता का प्लान बनाइए। यहां मनोरम वादियां है, शांति है, प्रकृति का सानिध्य है और सबसे बड़ी बात ये जगह भीड़भाड़ से दूर है। तो चलिए आज हम आपको चोपता की वादियों में ले चलें। समुद्र तल से बारह हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित चोपता घने जंगलों से घिरा है। सुबह-सुबह जब सूर्य की किरणें हिमालय की चोटियों पर पड़ती हैं तो दृश्य काफी मनोरम लगता है। यहां कई यादगार टूरिस्ट प्वाइंट्स मौजूद हैं जो आपकी यात्रा को यादगार बनाने के लिए काफी हैं। मिनि स्विट्ज़रलैंड है ‘चोपता’ हिमालय पर्वत की तलहटी पर बसे, इस छोटे से हिल स्टेशन को ‘छोटा स्विट्ज़रलैंड’ भी कहा जाता है। ज्यादा आम ना होने की वजह से ही चोपता की शांति और इसकी आबोहवा का जादू अब भी

कुमाऊँ का प्रमुख त्यौहार हरेला....

उत्तराखंड में मनाए जाने वाले लोक-त्यौहारों में एक प्रमुख त्यौहार है हरेला। यह लोकपर्व हर साल ‘कर्क संक्रांति’ को मनाया जाता है। अंग्रेजी तारीख के अनुसार, यह त्यौहार हर वर्ष सोलह जुलाई को होता है। लेकिन कभी-कभी इसमें एक दिन का अंतर हो जाता है। उल्लेखनीय कि हिन्दू पंचांग के अनुसार, जब सूर्य मिथुन राशि से कर्क राशि में प्रवेश करता है, तो उसे कर्क संक्रांति कहते हैं। तिथि-क्षय या तिथि वृद्धि के कारण ही यह पर्व एक दिन आगे-पीछे हो जाता है। बोये जाते हैं सात प्रकार बीज.... इस पर्व के लिये आठ-दस दिन पहले घरों में पूजा स्थान में किसी जगह या छोटी डलियों में मिट्टी बिछा कर सात प्रकार के बीज जैसे- गेंहूँ, जौ, मूँग, उड़द, भुट्टा, गहत, सरसों आदि बोते हैं और नौ दिनों तक उसमें जल आदि डालते हैं। बीज अंकुरित हो बढ़ने लगते हैं। हर दिन सांकेतिक रूप से इनकी गुड़ाई भी की जाती है और हरेले के दिन कटाई। यह सब घर के बड़े बुज़ुर्ग या पंडित करते हैं। पूजा ,नैवेद्य, आरती आदि का विधान भी होता है। कई तरह के पकवान बनते हैं। नव-जीवन और विकास से जुड़ा है यह त्यौहार.... सभी सा

उत्तराखंड की प्रसिद्ध बाल मिठाई

मिठाई का नाम लेते ही वैसे ही लोगों के मुंह में पानी आ जाता है, लेकिन आज आपके लिए हम जिस खास मिठाई की रेसिपी लेकर आए हैं उसको खाने के बाद अगर बार-बार खाने को मन ना ललचाए तो कहना। इसे घर पर आसानी से बनाया जा सकता है। यह मिठाई उत्तराखंड की मशहूर बाल मिठाई है। आपने अगर इसका नाम सुना है या पहले कभी खाया है तो आपको इसके स्वाद के बारे में हमें बताने की जरूरत नहीं है, लेकिन अगर आपने इसे पहले कभी नहीं खाया है तो जान लें इसे घर पर बनाने की आसान विधि… बनाने की विधि: (1) रेसिपी : इंडियन (2) कितने लोगों के लिए : 4 – 6 (3) समय : 1 से 1.5 घंटे (4) मील टाइप : वेज स्वीट बाल मिठाई बनाने के लिए आवश्यक सामग्री (1)   पिसी हुई चीनी- 500 ग्राम (2)   बिना पिसी चीनी- 500 ग्राम (3)   खोया/मावा- डेढ़ किलो (4)   टेट्रिक एसिड- 10 ग्राम (5)   दूध- आधा कप (6)   खसखस (पोस्ता के दाने)- 50 ग्राम (7)   घी, चिकनाई के लिए- आधा चम्मच (8)   पानी- 1 लीटर बाल मिठाई को बनाने विधि चाशनी के लिए सबसे पहले गैस पर कड़ाही में चीनी, टेट्रिक एसिड और पानी डालकर धीमी आंच पर उबालें। फिर जब चीनी घ

गोलू देवता की सत्य कहानी

अल्मोड़ा जिले में दुनिया का अपने आप में ऐसा ही एक अनोखा चित्तई स्थित गोलू देव का मन्दिर है. इसके बारे में कहा जाता है कि दुनिया में किसी मन्दिर में इतनी घंटियां नहीं चढ़ायी गयी हैं, जितने अकेले गोलू देव के मंदिर में मौजूद हैं. वहीं इस मंदिर में भगवान का फरियादी की अर्जी पढ़कर मनोकामना पूरी करना भी इसे बेहद खास बनाता है. इस मंदिर की मान्यता न सिर्फ देश बल्कि विदेशों तक में है. इसलिए यहां दूर-दूर से सैलानी और श्रद्धालु आते हैं. इस मंदिर में प्रवेश करते ही यहां अनगिनत घंटियां नजर आने लगती हैं. कई टनों में मंदिर के हर कोने-कोने में दिखने वाले इन घंटे-घंटियों की संख्या कितनी है, ये आज तक मन्दिर के लोग भी नहीं जान पाए. आम लोगों में इसे घंटियों वाला मन्दिर भी पुकारा जाता है, जहां कदम रखते ही घंटियों की कतार शुरू हो जाती हैं गोलू देवता की सत्य कहानी ग्वालियर कोट चम्पावत मैं झालरॉय के पुत्र हलराय राजा राज्य करते थे. यह बहुत पहले की बात है. उनकी सात रानियाँ थी. परन्तु वह संतानहीन थे. एक बार राजा अपने सैनिकों के साथ शिकार खेलने जंगल मैं गए. शिकार खेलते खेलते वह बहुत थक गए. और विश

कुमाऊँ के तीर्थ

विभाण्डेश्वर महादेव। अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट से सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जगत प्रसिध्द विभाण्डेश्वर महादेव मंदिर। नागार्जुन पर्वत की तलहटी पर पतित पावनी सुरभि और नंदनी का पावन संगम है। इसी संगम के सामने विद्यमान है विभाण्डेश्वर शिव मंदिर। यहां की गई शिव पूजा सर्वोत्तम है। स्कंध पुराण के मानस खंड में ऐसा वर्णन है... "नागार्जुनेति यो ख्यातो मया ते पर्वतोत्तमः। यस्य कुक्षो महादेवो दक्षिणे द्विजसत्तमा। विभाण्डेश इति ख्यातो देवगंधर्वपूजितो। यं संपूज्य महाभागा नान्यकृत्यं हि निश्चियात्। " विभाण्डेश्वर महादेव की पूजा करने के बाद कुछ करना शेष नहीं रहता। मानस खंड के अनुसार शिवजी विवाहोपरांत राजा हिमालय के पास आते हैं। हिमालय ने अर्घ पाद्य सहित भगवान महादेव के पूजा अर्चना की। शिव प्रसन्न हुए। राजा आने का कारण पूछा। शिवजी ने सोने की इच्छा प्रकट की। शिवजी के शयन के लिए उन्नत हिम शिखरों पर शिवजी ने सिर रखा। कमर नीलगिरी बागेश्वर में पैर दारूकानन जागेश्वर में रखे, दाईं भुजा नागार्जुन में और बाईं भुजा भुवनेश्वर में रखकर शिव सोए। चूंकि शिवजी की वरदाई दाईं भुजा नागार्जुन