अगर लेना है स्वर्ग का आनंद तो एक बार चले आइये देवभूमि उत्तराखंड के "चोपता" की वादियों में
रुद्रप्रयाग । चोपता शहर का कोलाहल धीमे-धीमे हिल स्टेशन्स तक भी पहुंचता जा रहा है। खासकर गर्मियों में हिल स्टेशन पहुंचने वाले टूरिस्ट की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है। ऐसे में अगर आप ऐसे टूरिस्ट प्लेस की तलाश कर रहे हैं जो शांति और सुकून देने वाला हो तो उत्तराखंड के चोपता का प्लान बनाइए। यहां मनोरम वादियां है, शांति है, प्रकृति का सानिध्य है और सबसे बड़ी बात ये जगह भीड़भाड़ से दूर है। तो चलिए आज हम आपको चोपता की वादियों में ले चलें।
समुद्र तल से बारह हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित चोपता घने जंगलों से घिरा है। सुबह-सुबह जब सूर्य की किरणें हिमालय की चोटियों पर पड़ती हैं तो दृश्य काफी मनोरम लगता है। यहां कई यादगार टूरिस्ट प्वाइंट्स मौजूद हैं जो आपकी यात्रा को यादगार बनाने के लिए काफी हैं।
मिनि स्विट्ज़रलैंड है ‘चोपता’
हिमालय पर्वत की तलहटी पर बसे, इस छोटे से हिल स्टेशन को ‘छोटा स्विट्ज़रलैंड’ भी कहा जाता है। ज्यादा आम ना होने की वजह से ही चोपता की शांति और इसकी आबोहवा का जादू अब भी बरकरार है। बुरांश और बांज के पेड़ों के बीच से गुजरते हुए आप कई तरह के पंछियों की आवाजें एक साथ सुन सकते हैं। शाम के वक्त दूर तक फैले घास के मैदान में बैठ कर केदारनाथ और चौखंभा की चोटियों को देखें तो ढलते सूरज की रोशनी में सोने की तरह चमकती बर्फ आंखों को चौंधिया देती है।
केदारनाथ और बद्रीनाथ के बीच चलने वाली गाड़ियां चोपता में सुस्ताने के लिए रुकती हैं, तो आप इसे एक पड़ाव भी कह सकते हैं। गर्मियों में भी यहां कड़ाके की ठंड पड़ती है। बारिश भी बिन-बुलाए मेहमान की तरह अचानक आ धमकती है। यहां से तुंगनाथ और चंद्रशिला के लिए पैदल यात्रा शुरू होती है। इस खूबसूरत स्थल से हिमालय की नंदादेवी, त्रिशूल एवं चौखम्बा पर्वत श्रृंखला के विहंगम दृश्य दिखाई देते हैं।
चोपता दिल्ली से 440 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। NH-58 पर मोहन नगर, हरिद्वार, ऋषिकेश और देवप्रयाग के रास्ते रुद्रप्रयाग तक पहुंचा जा सकता है। इसके आगे नेशनल हाइवे संख्या 109 पर अगस्त्यमुनि होते हुए कुंड तक पहुंचें। कुंड से उखीमठ के रास्ते आप चोपता पहुंच जाएंगे।
जनवरी-फरवरी के महीनों में आमतौर पर बर्फ की चादर ओढ़े इस स्थान की सुंदरता जुलाई-अगस्त के महीने में देखते ही बनती है। इन महीनों में यहां मीलों तक फैले मखमली घास के मैदान और उनमें खिले फूलों की सुंदरता देखने लायक होती है। इसीलिए अनुभवी पर्यटक इसकी तुलना स्विट्जरलैंड से करते हैं। सबसे खास बात ये है कि पूरे गढ़वाल क्षेत्र में ये अकेला क्षेत्र है जहां बस द्वारा बुग्यालों (ऊंचाई वाले स्थानों पर मीलों तक फैले घास के मैदान) की दुनिया में सीधे प्रवेश किया जा सकता है।
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