अल्मोड़ा जिले में दुनिया का अपने आप में ऐसा ही एक अनोखा चित्तई स्थित गोलू देव का मन्दिर है. इसके बारे में कहा जाता है कि दुनिया में किसी मन्दिर में इतनी घंटियां नहीं चढ़ायी गयी हैं, जितने अकेले गोलू देव के मंदिर में मौजूद हैं. वहीं इस मंदिर में भगवान का फरियादी की अर्जी पढ़कर मनोकामना पूरी करना भी इसे बेहद खास बनाता है.
इस मंदिर की मान्यता न सिर्फ देश बल्कि विदेशों तक में है. इसलिए यहां दूर-दूर से सैलानी और श्रद्धालु आते हैं. इस मंदिर में प्रवेश करते ही यहां अनगिनत घंटियां नजर आने लगती हैं. कई टनों में मंदिर के हर कोने-कोने में दिखने वाले इन घंटे-घंटियों की संख्या कितनी है, ये आज तक मन्दिर के लोग भी नहीं जान पाए. आम लोगों में इसे घंटियों वाला मन्दिर भी पुकारा जाता है, जहां कदम रखते ही घंटियों की कतार शुरू हो जाती हैं
गोलू देवता की सत्य कहानी
ग्वालियर कोट चम्पावत मैं झालरॉय के पुत्र हलराय राजा राज्य करते थे. यह बहुत पहले की बात है. उनकी सात रानियाँ थी. परन्तु वह संतानहीन थे. एक बार राजा अपने सैनिकों के साथ शिकार खेलने जंगल मैं गए. शिकार खेलते खेलते वह बहुत थक गए. और विश्राम करने लगे. उन्हो़ने अपने दीवान से पानी की मांग की. पानी पीते समय सोने के गडुवे मैं उन्हें सात हाथ लम्बा सुनहरा बाल दिखाई दिया. राजा कुछ आगे बड़े तो उन्हो़ने देखा की एक सुंदरी दो लड़ते हुए साडोँ को छुडा रही थी. राजा उसकी वीरता व सौंदर्य पर मुग्ध हो गए. राजा ने सुंदरी के आगे शादी का प्रस्ताव रखा. सुंदरी कालिंका के पिता रिखेशर ने अपनी बेटी का विवाह सहर्ष स्वीकार किया.
कालांतर मैं कालिंका गर्भवती हो गयी. राजा की अन्य सातों रानियों को बहुत जलन हुई. उन्हो़ने सोचा की अब उनकी पूँछ नहीं रहेगी. राजा कालिंका को ही प्यार करेगा. अतः उन्हो़ने किसी भी प्रकार उसके गर्भ को नष्ट करने की सोची. प्रसव के दिन राजा शिकार खेलने गया था. सातों रानियों ने बहाना बनाकर कालिंका की आंखों मैं पट्टी बाँध दी. उससे रानियों ने कहा की तुम मूर्छित न हो जाओ इसलिए पट्टी बाँध रहे हैं. बच्चा होने पर फर्स पर छेद करके बच्चे को नीचे गो मैं डाल दिया ताकि बकरे बकरियों द्बारा उसे मार दिया जाय. रानी के आगे उन्हो़ने सिल बट्टा रख दिया. बच्चा जब गो मैं भी जिन्दा रहा तो रानियों ने बच्चे को सात ताले वाले बक्से मैं रख कर काली नदी मैं डाल दिया.
मां कालिंका ने जब अपने सामने सिल बट्टा देखा तो वह बहुत रोई उधर सात ताले वाले बक्शे मैं बंद बच्चा धीवर कोट जा पहुंचा धीवर के जाल मैं वह बख्शा फंस गया. धीवर ने जब बख्शा खोला तो उसने उसमें जिंदा बच्चा देखा. उसने ख़ुशी ख़ुशी बालक को अपनी पत्नी माना को सौंप दिया. इस बालक का नाम गोरिया, ग्वल्ल पड़ा माना ने .बच्चे का लालन पोषण बड़े प्यार से किया. कहा जाता है की बालक गोरिया के धींवर के वहा पहुचने पर बाँझ गाय के थनोँ से दूध की धार फूट पड़ी. बालक नए नए चमत्कार दिखाता गया. उसे अपने जन्म की भी याद आ गयी.
एक दिन गोरिया अपने का के घोडे के साथ काली गंगा के उस पार घूम रहा था. वहीँ रानी कालिंका अपनी सातों सौतों के साथ नहाने के लिए आइ हुई थीं. बालक गोरिया उन्हें देखकर अपने का के घोडे को पानी पिलाने लगा.रानियों ने कहा देखो कैसा पागल बालक है. कहीं का का निर्जीव घोड़ा भी पानी पी सकता है. गोरिया ने जबाब दिया की यदि रानी कालिंका से सिल बट्टा पैदा हो सकता है तो का का घोडा पानी क्यों नहीं पी सकता. यह बात राजा हलराय तक पहुँचते देर न लगी. राजा समझ गया की गोरिया उसी का पुत्र है. गोरिया ने भी माता कालिंका को बताया की वह उन्हीं का बेटा है. कालिंका गोरिया को पाकर बहुत प्रसन्न हुई उधर. राजा ने सातों रानियाँ को फांसी की सजा सुना दी.
राजा हलराय ने गोरिया को गद्दी सो़प दी तथा उसको राजा घोषित कर दिया और खुद सन्यास को चले गए.मृत्यु के बाद भी वह गोरिया, गोलू ग्वेल, ग्वल्ल. रत्कोट गोलू, कृष्ण अवतारी, बालाधारी, बाल गोरिया, दूधाधारी, निरंकारी. हरिया गोलू, चमन्धारी गोलू, द्वा गोलू , घुघुतिया गोलू आदि नामों से पुकारे जाते हैं. उनकी मान रानी कालिंका पंचनाम देवता की बहिन थी.
आज भी भक्तजन कागज़ मैं अर्जी लिख कर गोलू मंदिर मैं पुजारी जी को देते हैं. पुजारी लिखित पिटीशन पढ़कर गोल्ज्यू को सुनाते हैं. फिर यह अर्जी मंदिर मैं टांग दी जाती है. कई लोग सरकारी स्टांप पेपर मैं अपनी अर्जी लिखते हैं. गोलू देवता न्याय के देवता हैं. वह न्याय करते हैं. कई गलती करने वालों को वह चेटक भी लागाते हैं. जागर मैं गोलू देवता किसी के आन्ग (शरीर) मैं भी आते हैं. मन्नत पूरी होने पर लोग मंदिर मैं घंटियाँ बाधते हैं. तथा बकरे का बलिदान भी देते हैं. मंदिर मैं हर जाति के लोग शादियाँ भी सम्पन्न कराते हैं.
चितई गोलू देवता मंदिर का इतिहास और मान्यताये
उत्तराखंड को देव भूमि के नाम से भी जाना जाता है , क्योकिं उत्तराखंड में कई देवी देवता वास करते है | (चितई गोलू देवता मंदिर का इतिहास और मान्यताये ,अल्मोड़ा )
जो कि हमारे ईष्ट देवता भी कहलाते है जिसमे से एक है , गोलू देवता |
जिला मुख्यालय अल्मोड़ा से आठ किलोमीटर दूर पिथौरागढ़ हाईवे पर न्याय के देवता कहे जाने वाले गोलू देवता का मंदिर स्थित है, इसे चितई ग्वेल भी कहा जाता है | सड़क से चंद कदमों की दूरी पर ही एक ऊंचे तप्पड़ में गोलू देवता का भव्य मंदिर बना हुआ है। मंदिर के अन्दर घोड़े में सवार और धनुष बाण लिए गोलू देवता की प्रतिमा है।
उत्तराखंड के देव-दरबार महज देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना, वरदान के लिए ही नहीं अपितु न्याय के लिए भी जाने जाते हैं | यह मंदिर कुमाऊं क्षेत्र के पौराणिक भगवान और शिव के अवतार गोलू देवता को समिर्पत है । ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण चंद वंश के एक सेनापति ने 12वीं शताब्दी में करवाया था।
एक अन्य कहानी के मुताबिक गोलू देवता चंद राजा, बाज बहादुर ( 1638-1678 ) की सेना के एक जनरल थे और किसी युद्ध में वीरता प्रदर्शित करते हुए उनकी मृत्यु हो गई थी। उनके सम्मान में ही अल्मोड़ा में चितई मंदिर की स्थापना की गई।पहाड़ी पर बसा यह मंदिर चीड़ और मिमोसा के घने जंगलों से घिरा हुआ है। हर साल भारी संख्या में श्रद्धालु यहां पूजा अर्चना करने के लिए आते हैं।
चितई गोलू देवता मंदिर की मान्यताये
इस मंदिर की मान्यता ना सिर्फ देश बल्कि विदेशो तक में है | इसलिए इस जगह में दूर दूर से पर्यटक और श्रदालु आते है | इस मंदिर में प्रवेश करते ही यहाँ अनगिनत घंटिया नज़र आने लगती है |
कई टनों में मंदिर के हर कोने कोने में देखने वाले इन घंटे घंटियों की संख्या कितनी है , ये आज तक मंदिर के लोग भी नहीं जान पाए | आम लोग के द्वारा इसे घंटियों वाला मंदिर भी पुकारा जाता है | जहा कदम रखते ही घंटियों की पंक्तियाँ शुरू हो जाती है |
चितई मंदिर में मनोकामना पूर्ण होने के लिए भक्तो के द्वारा अनेक अर्ज़िया लगायी जाती है | क्योंकि माना जाता है कि जिन्हें कही से न्याय नहीं मिलता है वो गोलू देवता की शरण में पहुचते है | और लोगो का मानना यह भी है कि ” गोलू देवता न्याय करते ही है ” | क्युकी गोलू देवता को “ न्याय का देवता ” माना जाता है |
चितई गोल्जू देवता मंदिर का इतिहास और मान्यताये
और यदि आप गोलू देवता की कहानी को जानना चाहते है तो इस लिंक में क्लिक करे :- घोडाखाल गोलू देवता की कहानी
कुमाउं के प्रसिद्ध निम्न चार स्थानो में स्थित गोलू देवता का मंदिर
1. गोलू देव मंदिर , चितई , अल्मोड़ा
2. चम्पावत गोलू मंदिर , चम्पावत
3. घोराखाल गोलू मंदिर , घोडाखाल
4. तारीखेत गोलू मंदिर , ताडीखेत
लोगों को मंदिरों में जाकर अपनी मुरादें मांगते देखा होगा | लेकिन उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित गोलू देवता के मंदिर में केवल चिट्ठी भेजने से ही मुराद पूरी हो जाती है। मूल मंदिर के निर्माण के संबंध में हालांकि कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं | परन्तु पुजारियों के अनुसार 19वीं सदी के पहले दशक में इसका निर्माण हुआ था।
इतना ही नहीं गोलू देवता लोगों को तुरंत न्याय दिलाने के लिए भी प्रसिद्ध हैं। इस कारण गोलू देवता को “न्याय का देवता” भी कहा जाता है।
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