चमोली, प्रकृति का सौंदर्य देखना हो, तो फूलों की घाटी चले आइए। उत्तराखंड के सीमांत चमोली जनपद के उच्च हिमालयी क्षेत्र में समुद्र तल से 3962 मीटर की ऊंचाई पर स्थित 87.5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैली यह घाटी पर्यटकों के लिए कुदरत का अनुपम उपहार है। यह वही घाटी है, जिसका जिक्र रामायण और महाभारत में नंदकानन के नाम से हुआ है।
लेकिन वर्तमान में इस घाटी का पता सबसे पहले वर्ष 1931 में ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस. स्मिथ और उनके साथी आरएल होल्डसवर्थ ने लगाया। इसकी बेइंतहां खूबसूरती से प्रभावित होकर स्मिथ 1937 में दोबारा घाटी में आए और 1938 में ‘वैली ऑफ फ्लॉवर्स’ नाम से एक किताब प्रकाशित करवाई। वर्ष 1982 में फूलों की घाटी को राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया। हिमाच्छादित पर्वतों से घिरी यह घाटी हर साल बर्फ पिघलने के बाद खुद-बखुद बेशुमार फूलों से भर जाती है। यहां आकर ऐसा प्रतीत होता है, मानो कुदरत ने पहाड़ों के बीच फूलों का थाल सजा लिया हो। अगस्त से सितंबर के बीच तो घाटी की आभा देखते ही बनती है। प्राकृतिक रूप से समृद्ध यह घाटी लुप्तप्राय जानवरों काला भालू, हिम तेंदुआ, भूरा भालू, कस्तूरी मृग, रंग-बिरंगी तितलियों और नीली भेड़ का प्राकृतिक वास भी है।
यूनेस्को की धरोहर
उत्तराखंड हिमालय में स्थित नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान और फूलों की घाटी सम्मिलित रूप से विश्व धरोहर स्थल घोषित हैं। फूलों की घाटी को वर्ष 2005 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर का दर्जा प्रदान किया।
हर 15 दिन में रंग बदलती है घाटी
फूलों की घाटी में जुलाई से अक्टूबर के मध्य 500 से अधिक प्रजाति के फूल खिलते हैं। खास बात यह है कि हर 15 दिन में अलग-अलग प्रजाति के रंगबिरंगे फूल खिलने से घाटी का रंग भी बदल जाता है। यह ऐसा सम्मोहन है, जिसमें हर कोई कैद होना चाहता है।
छंट गए आपदा के बादल
आपदा के दौरान 2013 में फूलों की घाटी जाने का रास्ता पूरी तरह आपदा की भेंट चढ़ चुका था। घांघरिया से फूलों की घाटी तक तीन किलोमीटर लंबे पैदल मार्ग में दो पुल भी बह गए थे। 2014 में हालांकि रास्ते का निर्माण पूरा हो गया था, लेकिन फूलों की घाटी के लिए एक माह के लिए ही पर्यटकों के लिए खोली गई। 2015 में भी 4500 देशी-विदेशी पर्यटक ही घाटी के दीदार को पहुंचे, लेकिन इस बार घाटी में रिकॉर्ड पर्यटक पहुंच रहे हैं।
प्लास्टिक ले जाना प्रतिबंधित
फूलों की घाटी में प्लास्टिक ले जाना प्रतिबंधित है। खाने की सामग्री के साथ जाने वाला कचरा भी पर्यटकों को वापस अपने साथ घांघरिया लाना होता है। ऐसा न करने पर कड़े जुर्माने का प्रावधान है। घाटी में रुकने की कोई सुविधा नहीं है, इसलिए पर्यटकों को दिन ढलने से पूर्व घांघरिया वापस लौटना
एंट्री शुल्क
फूलों की घाटी में एंट्री के लिए भारतीय पर्यटकों के लिए एंट्री फीस 150 रुपये है, जबकि विदेशी पर्यटकों के लिए यह फीस 650 रुपये है। अगर आपके साथ
बच्चे हैं और उनकी उम्र पांच साल से कम है, तो कोई एंट्री फीस नहीं है।
पायी जाने वाली पुष्प प्रजातियॉं
नवम्बर से मई माह के मध्य घाटी सामान्यतः हिमाच्छादित रहती है। जुलाई एवं अगस्त माह के दौरान एल्पाइन जड़ी की छाल की पंखुडियों में रंग छिपे रहते हैं। यहाँ सामान्यतः पाये जाने वाले फूलों के पौधों में एनीमोन, जर्मेनियम, मार्श, गेंदा, प्रिभुला, पोटेन्टिला, जिउम, तारक, लिलियम, हिमालयी नीला पोस्त, बछनाग, डेलफिनियम, रानुनकुलस, कोरिडालिस, इन्डुला, सौसुरिया, कम्पानुला, पेडिक्युलरिस, मोरिना, इम्पेटिनस, बिस्टोरटा, लिगुलारिया, अनाफलिस, सैक्सिफागा, लोबिलिया, थर्मोपसिस, ट्रौलियस, एक्युलेगिया, कोडोनोपसिस, डैक्टाइलोरहिज्म, साइप्रिपेडियम, स्ट्राबेरी एवं रोडोडियोड्रान इत्यादि प्रमुख हैं।
कैसे पहुंचें
फूलों की घाटी पहुंचने के लिए चमोली जिले का अंतिम बस अड्डा गोविंदघाट तीर्थनगरी ऋषिकेश से 275 किलोमीटर की दूरी पर है, जो कि जोशीमठ- बदरीनाथ के मध्य पड़ता है। ऋषिकेश तक रेल से भी पहुंचा जा सकता है, जबकि निकटतम हवाई अड्डा ऋषिकेश के पास जॉलीग्रांट (देहरादून) में है। गोविंदघाट से फूलों की घाटी के प्रवेश स्थल घांघरिया की दूरी 13 किलोमीटर है। जहां से पर्यटक तीन किलोमीटर लंबी व आधा किलोमीटर चौड़ी फूलों की घाटी का दीदार कर सकते हैं। जोशीमठ से गोविंदघाट की दूरी 19 किलोमीटर है।
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