पूरे देश से अदभूत, निराला है भारत का आखिरी गांव माणा
बहुत कठिन है जीवन
माणा में कड़ाके की सर्दी पड़ती है। छह महीने तक यह क्षेत्र केवल बर्फ से ही ढका रहता है। यही कारण है कि यहां कि पर्वत चोटियां बिल्कुल खड़ी और खुश्क हैं। सर्दियां शुरु होने से पहले यहां रहने वाले ग्रामीण नीचे स्थित चमोली जिले के गाँवों में अपना बसेरा करते हैं। आपको जानकर हैरत होगी कि यहां का एकमात्र इंटर कॉलेज छह महीने माणा में और छह महीने चमोली में चलाया जाता है। हालांकि यह पूरा क्षेत्र सालभर ठंडा रहता है लेकिन यहां की ज़मीन को बंजर नहीं कहा जा सकता। अप्रैल-मई में जब यहाँ बर्फ पिघलती है, तब यहां की हरियाली देखने लायक होती है। यहाँ की मिट्टी आलू की खेती के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। जौ और थापर (इसका आटा बनता है) भी अन्य प्रमुख फसलों में हैं। इनके अलावा यहां भोजपत्र भी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं, जिन पर हमारे महापुरुषों ने अपने ग्रंथों की रचना की थी। बद्रीनाथ में तो ये बिकते भी हैं। खेत जोतने के लिए यहां के लोग पशु-पालन भी करते हैं। पहले भेड़-बकरियाँ काफी संख्या में पाली जाती थीं लेकिन जाड़ों में उन्हें निचले क्षेत्रों में ले जाने वाली परेशानी को देखते हुए उनकी संख्या काफी कम हो गई है।
मिलती हैं जड़ी-बूटियां-
हिमालय क्षेत्र में मिलने वाली अचूक जड़ी-बूटियों के लिए भी माणा गाँव बहुत प्रसिद्ध है। हालांकि यहाँ के बहुत कम लोगों को इसकी जानकारी है। यहाँ मिलने वाली कुछ उपयोगी जड़ी-बूटियों में ‘बालछड़ी’ है जो बालों में रूसी खतम करने और उन्हें स्वस्थ रखने के काम आती है। इसके अलावा ‘खोया’ है जिसकी पत्तियों से सब्ज़ी बना कर खाने से पेट बिल्कुल साफ हो जाता है। यहां मिलने वाली ‘पीपी’ की जड़ भी काफी प्रसिद्ध है, इसकी जड़ को पानी में उबाल कर पीने से भी पेट साफ होता है और कब्ज की शिकायत नहीं रहती। ‘पाखान जड़ी’ भी अपने आप में बहुत कारगर है, इसको नमक और घी के साथ चाय बनाकर पीने से पथरी की समस्या कभी नहीं होती और पथरी के इलाज में भी ये बहुत कारगर साबित होती है। चावल की शराब और गलीचे
माणा गाँव की आबादी चार सौ के करीब है और यहाँ केवल 60 घर हैं। ज्यादातर घर दो मंजिलों पर बने हुए हैं और इन्हें बनाने में लकड़ी का ज्यादा प्रयोग हुआ है। छत पत्थर के पटालों की बनी है। इन घरों की खूबी ये है कि इस तरह के मकान भूकम्प के झटकों को आसानी से झेल लेते हैं। इन मकानों में ऊपर की मंज़िल में घर के लोग रहते हैं जबकि नीचे पशुओं को रखा जाता है। शराब के बाद चाय यहाँ के लोगों का प्रमुख पेय पदार्थ है। यहाँ चावल से शराब बनाई जाती है और यह घर-घर में बनती है। बद्रीनाथ धाम के पास शराब का यह बढ़ता प्रचलन मन को झिंझोड़ता और कचोटता जरूर है लेकिन हिमालयी क्षेत्र और जनजाति होने के कारण सरकार ने इन्हें शराब बनाने की छूट दे रखी है।
दर्शनीय स्थल-
माणा गाँव से लगे कई ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल हैं। गाँव से कुछ ऊपर चढ़ाई पर चढ़ें तो पहले नज़र आती है गणेश गुफा और उसके बाद व्यास गुफा। इसके पास ही है भीमपुल.
इसी रास्ते से आगे बढ़ें तो पाँच किमी. का पैदल सफर तय कर पर्यटक पहुँचते हैं वसुधारा. लगभग 400 फीट ऊँचाई से गिरता इस जल-प्रपात का पानी मोतियों की बौछार करता हुआ-सा प्रतीत होता है। ऐसा कहा जाता है कि इस पानी की बूँदें पापियों के तन पर नहीं पड़तीं। यह झरना इतना ऊँचा है कि पर्वत के मूल से पर्वत शिखर तक पूरा प्रपात एक नज़र में नहीं देखा जा सकता।
भारत-तिब्बत सीमा सुरक्षा बल का बेस-
माणा में ही भारत-तिब्बत सीमा सुरक्षा बल का बेस भी है। कुछ समय पहले तक यहाँ के युवकों को सुरक्षा बल में भर्ती नहीं किया जाता था, लेकिन अब इन लोगों को भी सीमा सुरक्षा बल में भर्ती किया जा रहा है। कोऑपरेटिव सोसायटी से उन्हें हर महीने राशन मिलता है। सभी के घरों में बिजली है और सभी को गैस कनेक्शन भी दिए गए हैं।
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