क्षेत्र में परंपरागत कुमांऊनी घुघुती त्यौहार को धूमधाम से मनाया गया। त्यौहार पर बच्चों की काले कौवा काले, घुघुति माला खा ले माहौल गूंज उठा। इस मौके पर लोगों ने एक दूसरे को बधाई दी। लोगों ने घुघता, बेड़ू, जलेबी और खिचड़ी आदि परंपरागत पकवान बनाकर एक दूसरे को बांटा। वहीं छोटे-छोटे बच्चों ने घुघुते की मालाओं से खेल कर त्यौहार का जम कर लुफ्त उठाया। इस दौरान अधिकांश बच्चे घुघुते की माला गले में पहने हुये थे। घुघुती त्यौहार पर क्षेत्र के ग्राम शांतिपुरी नंबर 2 आनंदपुर में तुषार दानू, कीर्ती कोरंगा, पवन दानू, कृष्ण कोरंगा, परी और हिमांशु कोरंगा आदि बच्चों ने घुघुती मालाओं से जम कर खेला। यहां जवाहरनगर, शांतिपुरी सहित कुमांऊनी मूल के गांवों में भी घुघुती त्यौहार धूमधाम से मनाया गया।
आज की युवा पीढ़ी को जानना आवश्यक है कि आखिर क्या कहानी है उत्तराखण्ड के घुघुती पर्व के पीछे .....
एक प्रचलित कथा के अनुसार, जब कुमाऊं में चन्द्र वंश के राजा राज करते थे। राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी। उनका मंत्री सोचता था कि राजा के बाद राज्य मुझे ही मिलेगा।
एक बार राजा कल्याण चंद सपत्नीक बाघनाथ मंदिर में गए और संतान के लिए प्रार्थना की। बाघनाथ की कृपा से उनका एक बेटा हो गया जिसका नाम निर्भयचंद पड़ा। निर्भय को उसकी मां प्यार से 'घुघुति' के नाम से बुलाया करती थी। घुघुति के गले में एक मोती की माला थी जिसमें घुंघुरू लगे हुए थे। इस माला को पहनकर घुघुति बहुत खुश रहता था। जब वह किसी बात पर जिद करता तो उसकी मां उससे कहती कि जिद न कर, नहीं तो मैं माला कौवे को दे दूंगी।
उसको डराने के लिए कहती कि 'काले कौवा काले घुघुति माला खा ले'। जब मां के बुलाने पर कौवे आ जाते तो वह उनको कोई चीज खाने को दे देती। धीरे-धीरे घुघुति की कौवों के साथ दोस्ती हो गई।
उधर मंत्री, घुघुति को मारने की सोचने लगा ताकि उसी को राजगद्दी मिले। मंत्री ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर षड्यंत्र रचा। एक दिन जब घुघुति खेल रहा था, तब वह उसे चुप-चाप उठाकर जंगल की ओर के गया तो एक कौवे ने उसे देख लिया और जोर-जोर से कांव-कांव करने लगा। उसकी आवाज सुनकर घुघुति जोर-जोर से रोने लगा और अपनी माला को उतारकर दिखाने लगा।
इतने में सभी कौवे इकट्ठे हो गए और मंत्री और उसके साथियों पर मंडराने लगे। एक कौवा घुघुति के हाथ से माला झपटकर ले गया। सभी कौवों ने एकसाथ मंत्री और उसके साथियों पर अपनी चोंच और पंजों से हमला बोल दिया। मंत्री और उसके साथी घबराकर वहां से भाग खड़े हुए।
घुघुति जंगल में अकेला रह गया। वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया तथा सभी कौवे भी उसी पेड़ में बैठ गए। जो कौवा हार लेकर गया था, वह सीधे महल में जाकर एक पेड़ पर माला टांगकर जोर-जोर से बोलने लगा।
जब लोगों की नजरें उस पर पड़ीं तो उसने घुघुति की माला घुघुति की मां के सामने डाल दी। माला सभी ने पहचान ली। सबने अनुमान लगाया कि कौवा घुघुति के बारे में कुछ जानता है। राजा और उसके घुडसवार कौवे के पीछे लग गए। कुछ दूर जाकर कौवा एक पेड़ पर बैठ गया।
राजा ने देखा कि पेड़ के नीचे उसका बेटा सोया हुआ है। उसने बेटे को उठाया, गले से लगाया और घर को लौट आया। घर लौटने पर जैसे घुघुति की मां के प्राण लौट आए। मां ने घुघुति की माला दिखाकर कहा कि आज यह माला नहीं होती तो घुघुति जिंदा नहीं रहता।
राजा ने मंत्री और उसके साथियों को मृत्युदंड दे दिया। घुघुति के मिल जाने पर मां ने बहुत सारे पकवान बनाए और घुघुति से कहा कि ये पकवान अपने दोस्त कौवों को बुलाकर खिला दे। घुघुति ने कौवों को बुलाकर खाना खिलाया। यह बात धीरे-धीरे सारे कुमाऊं में फैल गई और इसने बच्चों के त्योहार का रूप ले लिया। तब से हर साल इस दिन धूमधाम से इस त्योहार को मनाते हैं।
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