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Char Dham Yatra by Helicopter ,हेलीकॉप्टर द्वारा चार धाम यात्रा 2022

CHAR DHAM YATA 8 वीं शताब्दी के दौरान सबसे प्रसिद्ध संत 'आदि शंकरचार्य' ने चार प्रमुख हिंदू देवताओं  - गंगा, यमुना, विष्णु और शिव के निवास स्थान का आधारशिला रखी थी। इन चार प्रतिष्ठित हिंदू तीर्थों की तीर्थयात्रा को छोटा चार धाम यात्रा कहा जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार ये सभी स्थल कई मिथकों और कथाओं से संबंधित हैं। यमुनोत्री देवी यमुन से जुड़ा हुआ है और यमुना नदी के मूल के रूप में जाना जाता है। जबकि पवित्र स्थान गंगोत्री देवी गंगा का निवास और गंगा नदी के सुप्रसिद्ध है। अन्य दो गंतव्यों बदरियन और केदारनाथ भगवान विष्णु और शिव के साथ जुड़े हुए हैं हेलीकॉप्टर द्वारा चौधम यात्रा पश्चिम से पूर्व तक शुरू होती है। इसलिए, आपकी यात्रा यमुनोत्री से शुरू होती है, गंगोत्री से केदारनाथ और बद्रीनाथ तक जाती है। यह 5 दिन और 4 नाइट हेलीकॉप्टर टूर पैकेज न केवल आपको इन चार पवित्र स्थलों पर दर्शन प्रदान करता है, बल्कि हिमाच्छादित हिमालय की शांति के बीच कुछ समय भी प्रदान करता है। kedarnath ji helicopter  1 Day - देहरादून - यमुनोत्री  07:00 पूर्वाह्न: प्रस्थान

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Char Dham Yatra   चार धाम की यात्रा शुरू हो चुकी है. अनेको लोग यात्रा के लिए अपने अपने घरो से प्रस्थान कर चुके है. कई लोगो के लिए चार धाम की यात्रा करना एक सुन्दर सपने के पुरे हो जाने जैसा है. सिर्फ भारत से ही नहीं बल्कि दुनियां के कई देशो से लोग चार धाम की यात्रा के लिए आते है. यहाँ की प्राकर्तिक सुन्दरता, प्राचीनता, और बर्फ से ढकी उत्तराखंड की पहाड़ियों के बीच बने चार धाम श्रधालुओं का मन मोह लेते है. लेकिन क्या आप जानते है चार धाम की यात्रा क्यों की जाती है? चार धाम कौन कौन से है? इन चारो धामों का निर्माण किसने करवाया? शायद कई लोग जो इन यात्रा को कर चुके है वे भी इसके इतिहास के बारे में उतना नहीं जानते. तो चलिए आज इस पोस्ट में हम आपको चार धाम  की यात्रा के बारे में बताते है. चारो धाम के नाम हिन्दू पुराणों के अनुसार बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथ पुरी और रामेश्वरम को चार धामों में गिना जाता है. इन धार्मिक स्थलों की यात्रा को चार धाम यात्रा कहा जाता था. लेकिन आज आप उत्तराखंड की जिस चार धाम यात्रा के बारे में जानते है असल में वह छोटी चार धाम यात्रा है. इस यात्रा में बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत

एक गर्भवती हथिनी को पटाख़ों से भरा अनन्नास खिलाया

केरल जैसे शिक्षित राज्य में एक गर्भवती हथिनी मल्लपुरम की सड़कों पर खाने की तलाश में निकलती है। उसे अनन्नास ऑफर किया जाता है। वह मनुष्य पर भरोसा करके खा लेती है। वह नहीं जानती थी कि उसे पटाख़ों से भरा अनन्नास खिलाया जा रहा है। पटाख़े उसके मुँह में फटते हैं। उसका मुँह और जीभ बुरी तरह चोटिल हो जाते हैं।   मुँह में हुए ज़ख्मों की वजह से वह कुछ खा नहीं पा रही थी। गर्भ के दौरान भूख अधिक लगती है। उसे अपने बच्चे का भी ख़याल रखना था। लेकिन मुँह में ज़ख्म की वजह से वह कुछ खा नहीं पाती है। घायल हथिनी भूख और दर्द से तड़पती हुई सड़कों पर भटकती रही। इसके बाद भी वह किसी भी मनुष्य को नुक़सान नहीं पहुँचाती है , कोई घर नहीं तोड़ती। पानी खोजते हुए वह नदी तक जा पहुँचती है। मुँह में जो आग महसूस हो रही होगी उसे बुझाने का यही उपाय सूझा होगा। फॉरेस्ट डिपार्टमेंट को जब इस घटना के बारे में पता चलता है तो वे उसे पानी से बाहर लाने की कोशिश करते हैं लेकिन हथिनी को शायद समझ आ गया था कि उसका अंत निकट है। और कुछ घंटों बाद नदी में खड़े-खड़े ही वह दम तोड़ देती है। फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के जिस ऑफिसर के सामने यह घटना घटी उ

मेरे पहाड़ के रियल हीरो बांसुरी वादक - श्री मोहन जोशी

मेरे पहाड़ के रियल हीरो *हुड़का और बांसुरी बनाने का कार्य भी सुरु कर दिया है*। बांसुरी वादक - श्री मोहन जोशी मोहन जोशी जी एक बहुत ही खास बांसुरी वादक हैं. मूल रूप से उत्तराखंड के बागेश्वर निवासी मोहन जोशी वर्तमान में उत्तराखंड के सर्वश्रेष्ठ बांसुरी वादकों में गिने जाते हैं . मोहन जोशी उत्तराखंड के सभी बड़े लोक-गायकों के साथ काम कर चुके हैं . बचपन से ही वे उत्तराखंडी कुमाऊँनी व गढ़वाली गीतों और पारम्परिक धुनों को अपनी बांसुरी पर बजाया करते थे. न केवल लोक-संगीत बल्कि मोहन जोशी भारतीय शास्त्रीय संगीत में भी बहुत रूचि रखते हैं. उन्हें प्रयाग संगीत समिति (इलाहाबाद) से "संगीत-प्रभाकर" की उपाधि भी मिली है .मोहन जोशी विभिन्न रेडिओ स्टेशनों से भी अपनी कला का प्रसारण कर चुके हैं . आकाशवाणी केंद्र-रामपुर (उ.प्र.) से वे बी-ग्रेड के नियमित कलाकार के रूप में सम्बद्ध हैं . साथ ही विभिन्न टीवी चैनलों पर भी आपके प्रसारण होते रहते हैं , जैसे दूरदर्शन, आस्था , श्रद्धा इत्यादि . लोक संगीत एवं शास्त्रीय संगीत के अतिरिक्त वे "भजन संगीत" से भी जुड़े हैं . अनेक आध्यात्मिक

अल्मोड़ा के चमड़खान गोल्ज्यू देवता मंदिर वीडियो

उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जनपद में स्थित चमड़खान के 'ग्वल ज्यू' महाराज के, आपके सभी मनोरथ गोलू देवता करें पूर्ण... ऋग्वेद में उत्तराखंड को देवभूमि कहा गया है। ऐसी भूमि जहां देवी-देवता निवास करते हैं। हिमालय की गोद में बसे इस सबसे पावन क्षेत्र को मनीषियों की पूर्ण कर्म भूमि कहा जाता है। उत्तराखंड में देवी-देवताओं के कई चमत्कारिक मंदिर हैं। इन मंदिरों की प्रसिद्धि भारत ही नहीं बल्कि विदेशों तक फैली हुई है। इन्हीं में से एक मंदिर गोलू देवता का भी है। गोलू देवता को स्थानीय मान्यताओं में न्याय का देवता कहा जाता है।

आखिर क्या कहानी है उत्तराखण्ड के घुघुती पर्व के पीछे

क्षेत्र में परंपरागत कुमांऊनी घुघुती त्यौहार को धूमधाम से मनाया गया। त्यौहार पर बच्चों की काले कौवा काले, घुघुति माला खा ले माहौल गूंज उठा। इस मौके पर लोगों ने एक दूसरे को बधाई दी। लोगों ने घुघता, बेड़ू, जलेबी और खिचड़ी आदि परंपरागत पकवान बनाकर एक दूसरे को बांटा। वहीं छोटे-छोटे बच्चों ने घुघुते की मालाओं से खेल कर त्यौहार का जम कर लुफ्त उठाया। इस दौरान अधिकांश बच्चे घुघुते की माला गले में पहने हुये थे। घुघुती त्यौहार पर क्षेत्र के ग्राम शांतिपुरी नंबर 2 आनंदपुर में तुषार दानू, कीर्ती कोरंगा, पवन दानू, कृष्ण कोरंगा, परी और हिमांशु कोरंगा आदि बच्चों ने घुघुती मालाओं से जम कर खेला। यहां जवाहरनगर, शांतिपुरी सहित कुमांऊनी मूल के गांवों में भी घुघुती त्यौहार धूमधाम से मनाया गया। आज की युवा पीढ़ी को जानना आवश्यक है कि आखिर क्या कहानी है उत्तराखण्ड के घुघुती पर्व के पीछे ..... एक प्रचलित कथा के अनुसार, जब कुमाऊं में चन्द्र वंश के राजा राज करते थे। राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी। उनका मंत्री सोचता था कि राजा के बाद राज्य मुझे ही मिलेगा। एक बार राजा कल्याण चंद स

कहानी एक शिव-भक्त की

​​" केदारनाथ को क्यों कहते हैं   ‘जागृत महादेव’ ?,  एक बार एक शिव-भक्त अपने गांव से केदारनाथ धाम की यात्रा पर निकला। पहले यातायात की सुविधाएँ तो थी नहीं, वह पैदल ही निकल पड़ा। रास्ते में जो भी मिलता केदारनाथ का मार्ग पूछ लेता। मन में भगवान शिव का ध्यान करता रहता। चलते चलते उसको महीनो बीत गए। आखिरकार एक दिन वह केदार धाम पहुच ही गया।  केदारनाथ में मंदिर के द्वार 6 महीने खुलते है और 6 महीने बंद रहते है। वह उस समय पर पहुचा जब मन्दिर के द्वार बंद हो रहे थे। पंडित जी को उसने बताया वह बहुत दूर से महीनो की यात्रा करके आया है। पंडित जी से प्रार्थना की - कृपा कर के दरवाजे खोलकर प्रभु के दर्शन करवा दीजिये। लेकिन वहां का तो नियम है एक बार बंद तो बंद। नियम तो नियम होता है। वह बहुत रोया। बार-बार भगवन शिव को याद किया कि प्रभु बस एक बार दर्शन करा दो। वह प्रार्थना कर रहा था सभी से, लेकिन किसी ने भी नही सुनी।   पंडित जी बोले अब यहाँ 6 महीने बाद आना, 6 महीने बाद यहा के दरवाजे खुलेंगे। यहाँ 6 महीने बर्फ और ढंड पड़ती है। और सभी जन वहा से चले गये। वह वही पर रोता रहा। रोते-रोते रात होने लगी चारो